कोई एक न हो तो सबसे कहो
कोई एक न हो तो सबसे कहो
इंसान न सही रब से कहो
पर कहां से शुरू करू कबसे कहूं
ये बात जेहन में है उस रात से गर कहूं।
परेशान मन है बैचेन ये धड़कने भी
मुश्किल है हर पल लम्हों की अटकलें भी
दिन की गुजर बसर है पर रात की कोई खबर नहीं
कैसा हैं ये सब लगता ही सही नहीं।
वक्त सही नही तभी ये कल्पनाएं भी है
अल्फाजों में पिरोई हुई रचनाएं भी है
खुद से खुद की हुई याचनाए भी है
जो पढ़कर देखूं इन्हे तो लगे ये सब क्या ही है
कविताएं बनाकर सही करू सब कुछ
जो भाव निकले अंतर्मन से वो गहरे है सचमुच
©शिवांगी
#wordsplay
0 Comments