Play on words

 

जो ये मसले न हो तो लेख न हो आखिर यही तो होते है जो लिखने की विवशताओ को सामने लाते है , शब्दो से जो नाता एक बार जुड़ जाता है वो टूटते नही टूटता । लेकिन गर ये न हो तो जेहन की वो खालिश पूरी ही न हो जो राहत ये अपने कहीं दर्ज होने के दौरान दे जाते है वो शायद ही कहीं से मिले ।अब खुद के साथ इन अल्फाजों से भी उतनी ही गहरी मित्रता है जो उम्मीद करती हूं कभी न खत्म हो ।

©Shivangi

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