ये चांद और इसकी चांदनी जितनी खूबसूरत है 

उतनी ही खुद से खुद पे ही मोहित 

चाहती है चांद रात को हम निहारे सारी रात इसे

जागे बैठे हुए उस खुले आसमां के नीचे से ।

बातें करे इससे 

समझ की वो ही हमारा अजीज है और

वो ही हमारा हमदम।

और नही कोई जहां मे जो इस चांदनी रात तले सुने 

तुमसे तुम्हारी बातें 

देखे तुम्हारी मुस्कान और देखें तुम्हारी अटकलें 

जो अपनी बात को कहते कहते तुम्हारी सांसों में आ जाती है

ठहर जाती है उन कुछ गहरे से अल्फाजों के बीच ।

पर वो चांदनी संग जो हवाएं बहती है न वो रुकने नही देती

उस ठहराव में ज्यादा 

जिद्द पकड़ लेती हैं कुछ हसीन लम्हों को और सुनने की और सनसनाहट संग जोरो से बहने की ।

हम भी बह जातें है उन हवाओं तले 

उन पुरानी सी कहानियों को फिर से लगा के गले 

समेट कर उन सब किस्सों को 

मै वो रात और वो चांद


©शिवांगी

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