इन कोरे कागजों को किससे भरू

लिखूं इसमें प्रेम अपना 

या लिखूं अपना हृदय घात

लिखूं इसमें उद्वेग अपना

या लिखूं अपना जीवन स्वाद।


कुछ पंक्तियों की आहटो से 

मन को मै कुछ पल विचलित करू 

विचारों के गहरे भवर में

डूब जाने से अब न डरूं।


गहराइयों में ही मिलती है 

ऊंचाइयों की कहानियां 

मगर तुम्हे है घूमते रहना

रोकनी न होंगी रवानियाँ ।


कलम का सफर अनंत तलक हो

कभी खत्म न हो कागजों की लंबाइयां 

रखनी होगी आशाएं नई संभावनाओं की

वो पुरानी सी बातों पर ज्यादा दर्ज न होंगी सुनवाइयां।


©शिवांगी 

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