Barish ka mosam or chai
बारिश का मौसम और हाथों में वो चाय का प्याला
वो तो इतना भारी नही पर मन में उबल रहा वो ख्यालों का अंबार नही जाता संभाला।
नजरे उन टपकती हुई एक एक बूंद के साथ उन ख्यालों से कुछ पुराने से कुछ अजीज से किस्सों की एक फिल्म सी चला देती है। होठों से टकराती वो चाय की प्याली अपनी गर्माहट से उन किस्सों को जरा और नजदीक ला देती है।
अब उस चाय की हर चुस्की के साथ उसका लुत्फ उठाने हाजिर है एक ख्याल ,
कुछ ठंडे से है मौसम की तरह कुछ भागते हुए जैसे बादल।
तो कुछ ठहरे से उन जमी पे बिखरी हुई वो बूंदे की तरह , खामोशियों से भरे चंचलता समेटे कोई और लम्हा इससे बेहतर और कहां ही मिलते है।
नज़ारों और नजरों में कुछ पल को एकरूपता भी एक नई सी याद को उन किस्सों में जोड़ देती है।
अगली बारिश में ये इस बार का लम्हा सबसे पहले स्मृतियों में जरूर होगा ।
ये तो बात रही नजरों और नज़ारों की ...लेकिन बारिश में आती मिट्टी की वो सोंधी सी खुशबू भी चेहरे पे एक राहत भरी मुस्कान लाने के लिए काफी है ,
देखते देखते काफी वक्त गुजर गया और वो प्याला भी अब आधा खाली हो गया ,कुछ ख्याल भी आके मिलके जा चुके ,अब सामने हैं वो नजारे वो बरसती ठंडी सी बोछारे।
जो पास हो कोई जेहनसीब तो कुछ पलों की सांझेदारी और हो जाए जो बाकी कोई समां रह गया हो वो भी अभी गौर हो जाए ..
सामने हो बरसाते.. हाथो में एक अधूरा सा प्याला.. चेहरे पे कुछ ख्यालों की महक ..बस.....,इन इंतजामों में ही शाम ढल जाए।
#wordsplay
©Shivangi
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